वो है कही
कुछ दूर चलके,
धीरे-धीरे गुम सी हो गई है आवाज़ वो,
कानो को आदत सी हो गई है,
खामोशी की अब.
धुऑ-धुऑ सा तो नही था,
आंखो के आगे ,
पर तस्वीर उसकी ,
धूंधला –सी गई है अब .
जिक्र बातो मे अक्सर होता है उसका,
जुबां पर नाम भी आता है कभी,
फिर दिल से एक आवाज़ आती है,
और अल्फाज़ दिल मे दबे से रह जाते है अब.
हाथो को देखा तो लकिरो ने कहा,
करीब से देखो ज़रा,
वो लाइन जो उससे तुम्हे मिलाती,
मिट गई है अब.
बारिश मे वो नाव चलाती थी जब,
काश उसमे संग उसके बैठ जाता तब ,
छतरी अपने दिल की खोलकर उसमे उसे बैठाता,
दुनिया की भीड से दूर एक नयी दुनिया बसाता अब.
किस्से कहाँनियो मे पढा था मैंने,
बचपन की यादो मे सुना भी था शायद,
के कुछ लोग सिर्फ मिलते है,
जुदा होने के लिये अब.
ख्यालो मे हो या फिर कविता मे ,
या फिर उन किस्सो मे ,
वो बसी हुई है ,
हर कहाँनी मे अब.
या फिर उन किस्सो मे ,
वो बसी हुई है ,
हर कहाँनी मे अब.
(चिराग जोशी)
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