
जेब में कुछ सिक्के जो होते ,
आसमान की सैर कर आते
बदलो पर बैठकर जाते
खुदा से कुछ बात कर आते
नासमझ हैं पर फिर भी
समझदारी की बात कर आते
थोड़ी सी जिद करते
और जिद में
सबकी ख़ुशी मांग लाते
छोटे छोटे हाथ हैं हमारे
पर बड़ी-बड़ी यादो को समेट लाते
तुतलाती हुई जुबान से खुदा को
डांट भी आते
जब सब कहते हैं
हम हैं तुम्हारे की स्वरुप
फिर क्यों ठुकराते हैं
डराते हैं ,मन पड़े तो मार भी देते हैं
कुछ लोग हमें
जब कहता खुदा हमसे के
तुम हो मेरे ही बच्चे
हम कहते के अपने
बच्चो के खातिर कभी तो धरती पर आ
कभी कृष्ण बनकर
कभी राम बनकर
आये थे तुम धरती पर
पर तुम्हे भी डराया था
तुम हो भगवान इसीलिए
तुमने सबको हराया था
जब तुम्हे ही न समझ पाए वो पापी
तो हम मासुमो को कैसे समझेंगे ….
(चिराग )
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बहुत बेहतरीन रचना…
very nice blog…and very good attempt of writing…keep writing…
सुंदर कविता लिखी आपने …
@chaitanya ji
thanks