
धोखे पर ही चल रही हैं दुनिया,
जो सच कहा मैंने तो मुझे गुनहगार कह रही हैं दुनिया
जानवरो का तो गोश्त खा रही हैं दुनिया
ना अपने की फिक्र,
ना पराये की खुशी,
सिर्फ “ मैं ” मे सिमट गई हैं दुनिया
धोखे पर ही चल रही हैं दुनिया,
जो सच कहा मैंने तो मुझे गुनहगार कह रही हैं दुनिया
कांच के टुकडे पर कोई चलता नही,
पत्थर घरो पर एक दुसरे के फेकती हैं दुनिया
मुस्कुराकर ना चलना यहा कभी,
जलन के मारे जलती हैं दुनिया
अच्छाई को सुंघती भी नही,
बुराई से पेट भरती हैं दुनिया
धोखे पर ही चल रही हैं दुनिया,
जो सच कहा मैंने तो मुझे गुनहगार कह रही हैं दुनिया
कोई लडे तो पिछे खडी हो जाती हैं,
अकेले मे तो खुद के ही लब सील लेती हैं दुनिया
कभी चादर भरोसे की ओढ मत लेना,
छेद गद्दारी के करती हैं दुनिया
धोखे पर ही चल रही हैं दुनिया,
जो सच कहा मैंने तो मुझे गुनहगार कह रही हैं दुनिया
अपनी मंज़िल का पता सबको ना बताना यहा,
आंखे फोडकर सपने चुराती हैं दुनिया
कभी विद्वान खुद को समझना ना यहा
कदम कदम पर पाठ पढाती हैं दुनिया
धोखे पर ही चल रही हैं दुनिया,
जो सच कहा मैंने तो मुझे गुनहगार कह रही हैं दुनिया
(चिराग)
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जितनी तारीफ करु कम है
सुपर कविता
अब यह लगने लगा है कि इमानदार लोग ही धोखेबाज़ हैं जो सच को स्वाकार नहीं कर रहे और ख़ुद को धोखा देते हैं :))
बहुत ही खुबसूरत….. भावो का सुन्दर समायोजन……
उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति…बहुत बहुत बधाई…
सच कहा आपने बहुत फूंक फूंक कर कदम न रखें तो जीना दुश्वार होते देर नहीं लगेगी ..
..दुनिया से समय से चेत जाने की अच्छी नसीहत भरी रचना
Awesome!!!! 🙂 🙂
bahut hi behtarin likha hai apne..
lajavab..:-)
बहुत सुन्दर ……मन खुश हो गया पढ़ कर
बहुत अच्छे से अपने भावों को व्यक्त किया है आपने!
बहुत ही शानदार। Superb.