मेरे हर सफ़र का साथी था वो
ना जाने कब हवा चली और धुँआ हो गया वो
मेरी हर नजर का दर्पण था वो
ना जाने कब धुप गई और अँधेरा हो गया वो
मेरी चादर का एक किनारा था वो
ना जाने कब रास्ते में काँटा आया और फट कर चिंदी हो गया वो
मेरी रात का एक सपना था वो
ना जाने कब सुबह हुई और टूट गया वो
मेरी गजल का गायक था वो
ना जाने कब स्याही ख़त्म हुई और बेसुरा हो गया वो
मेरी आँखों में लगा सुरमा था वो
ना जाने कब आंसू आये और बह गया वो
मेरी तारीफों का पुलिंदा था वो
ना जाने कब शोहरत गई और गुम हो गया वो
मेरी नाजुक हथेलियों में लकीर था वो
ना जाने कब बारिश हुई और मिट गया वो
मेरी जिंदगी की पहचान था वो
ना जाने कब मौत आई और दफ़न हो गया वो
(चिराग )
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@induravisinghji thanks a lot
सुंदर..!!
🙂 Loved it…!! 🙂
कल 30/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
मेरी नाजुक हथेलियों में लकीर था वो
ना जाने कब बारिश हुई और मिट गया वो …सजीव अभिवयक्ति…..
खूबसूरत गज़ल
अपने सुन्दर लेखन से आप ब्लॉग जगत को सदा ही
आलोकित करते रहें यही दुआ और कामना है.
आपसे परिचय होना वर्ष २०११ की एक सुखद उपलब्धि रही.
@nivedita ji
thanks a lot
पर उम्मीद में है बसा अब भी वो…
खूबसूरत रचना।
@deepti thanks and nice lines good
गहन अभिव्यक्ति ………..
bahut khub chirag
is moke par m apni kuch panktiya likhti hu
" vo to chala hi gya ,
jise jana tha
tu na use yaad kar
apna jivan tu
uske liye na barbad kar"
_ deepti sharma