Poem On City | कौन रहता है इस शहर में
कौन रहता हैं इस शहर में ,
अनजाने लोग जहा मिलते है अब
कौन रहता है इस शहर में,
रातो के साए जहा आते नहीं अब
बंद दरवाजे है , खिड़की पर ताले है ,
चोखट पर धुल नहीं है अब
कौन रहता है इस शहर में …..
ख्वाब तलाशने निकलना है ,
खुली आँखों से नींद आती नहीं अब
खुली आँखों से नींद आती नहीं अब
आसमान का रंग बदल चूका है ,
पानी में भी तस्वीर नहीं दिखती अब
पानी में भी तस्वीर नहीं दिखती अब
मुस्कराहट की याददाश्त खो चुकी है ,
आंसुओ के सैलाब हर कदम पर है अब
आंसुओ के सैलाब हर कदम पर है अब
कौन रहता है इस शहर में …..
विचारों की परछाई दिख रही है ,
राज़ बेघर हो गए है यहाँ अब
राज़ बेघर हो गए है यहाँ अब
सिक्को की आवाज़ अब सुनाई देती नहीं ,
हवाओ में उड़ती है रोशनी उनकी अब
हवाओ में उड़ती है रोशनी उनकी अब
जिंदगी से बेवफाई सबने की है ,
और मौत से डरते है सब
और मौत से डरते है सब
बचपन में जवानी ,जवानी में बुढापा है ,
मौत के बाद भी चैन नहीं है अब
मौत के बाद भी चैन नहीं है अब
कौन रहता है इस शहर में …..
(चिराग )
Youtube Chirag Ki Kalam
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deepawali ki bahut bahut shubhkaamnaye
dhanaywaad…
deepawal ki bahut bahut shubhkaamnaye
dhanaywaad…
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति,
पोस्ट पर आने के लिए आभार,,,,
recent post…: अपने साये में जीने दो.
bahut badhiya chirag…one of the deepest thoughts from your side…cheers
Beautifully written…….. reminds me of Uttaranchal in some lines.
deepawal ki bahut bahut shubhkaamnaye
dhanaywaad…
बहुत बढिया । आपको दीपावली की शुभकामनायें
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति………
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें |
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