क्रिकेट के खेल मे कई उतार चढाव होते है और इसिलिये इसे अनिश्चित्ताओ का खेल कहा जाता है । भारतीय क्रिकेट मे कई एक से बढकर महान खिलाडी आये और उन खिलाडीयो के शुरुवाती दौर से लेकर उनके खेल के करियर के आखिर तक हम सोचते है के ये खिलाडी अभी ओर आगे खेले और देश का नाम रोशन करे । इन सबके बीच कुछ खिलाडी ऐसे भी है जो महान खिलाडीयो की श्रेणी मे नही आ पाये पर जब-जब वो खेले उनका खेल हमेशा उच्च स्तर का ही रहा है ।
आशीष नेहरा उन्ही खिलाडीयो मे से एक है । नेहराजी के नाम से मशहूर इस खिलाडी का जन्म 29 अप्रैल 1979 को दिल्ली मे हुआ । नेहराजी एक टिपीकल दिल्ली के लडके से बिलकुल अलग है ।एकदम सिम्पल और अपने मन की करने वाले नेहराजी ने 1997-98 मे दिल्ली के लिये घरेलू क्रिकेट मे डेब्यू किया था । दुबले-पतले नेहराजी गेंद को दोनो ओर स्विंग कराने मे माहीर है । 24 फरवरी 1999 को पडोसी देश श्रीलंका के खिलाफ़ उन्होने अपने टेस्ट करियर का आगाज़ किया था और 21 जून 2001 को जिम्बाब्वे के खिलाफ एकदिवसीय करियर का आगाज़ किया । नेहराजी ने जिम्बाब्वे के इस दौरे पर जो कहर ढाया था उसे आज भी सब याद करते है । उन्होने उस दौरे पर अपनी स्विंग गेंदबाजी से हर बल्लेबाज़ को नचाया और भारत को विदेशी जमीन पर 15 साल बाद टेस्ट जीतने मे मदद की ।
नेहराजी का असली जादू साऊथ अफ्रीका मे विश्व कप 2003 मे देखने को मिला जहा उन्होने दुनिया के हर बल्लेबाज़ को अपनी स्विंग गेंदबाजी से परेशान किया । खासकर इंग्लैड के खिलाफ डरबन मे उन्होने जो गेंदबाजी की वो आजतक हम सबके ज़ेहन मे है । उस दिन ऐसा लग रहा था के गेंद सिर्फ और सिर्फ उनकी ही बात सुन रही थी । उस मैच मे भारत ने 9 विकेट पर 250 रन बनाये थे । जवाब मे इंग्लैड के 2 विकेट सिर्फ 18 रन पर गवा दिये थे । उसके बाद नासिर हुसैन और माइकल वान क्रिज़ पर टीक गये और लगा के ये दोनो आसनी से मैच निकाल देंगे पर तब तक नेहराजी का जादू बचा था । सबसे पहले नेहराजी ने एक शानदार आऊट स्विंगर डाल कर आऊट किया और फिर जो फालो थ्रू मे उन्होने किया वो गेंद की स्विंग को बता रहा था । अगली गेंद पर उन्होने अपनी स्टाक बाल डाली जो दाये हाथ के बल्लेबाज के लिये पड्कर अंदर की ओर आती है और एलेक स्टूवर्ट के कुछ भी समझ नही आया और इंगलैड ने दो गेंदो पर दो विकेट गवा दिये । नेहरा जी ने इस विकेट के बाद दादा को इशारे मे बताया भिया ये भी डाल सकते है अपन । नेहराजी ने दो ओवर बाद फिर से बाहर जाती हुई गेंद डाली और माइकल वान को चलता किया और फिर से फालो थ्रू मे गेंद की स्विंग को बताया । अगर आपने वो मैच देखा हो तो नेहराजी ने जो चौथा विकेट लिया । वो गेंद एक बेहतरीन गेंद थी । पिच पर पड्कर गेंद ने तेजी से कांटा बदला और कोलिंगवूड के बल्ले का किनारा लेकर गेंद नेहराजी ने बचपन के दोस्त सहवाग के हाथो मे फर्स्ट स्लिप मे चली गई और सहवाग ने बचपन मे नेहराजी का नाश्ता खाने का हिसाब चुका दिया । इस बार उन्होने फालो थ्रू मे कुछ नही किया शायद उन्हे भी आश्चर्य हुआ इस गेंद के इतने स्विंग होने पर । इसके बाद बाकी विकेट नेहराजी के आसान हो गये क्योंकी इंग्लैड के बल्लेबाजो उनकी गेंदे समझ नही आ रही थी । वाईट और इरानी को बेहतरीन आऊट स्विंग से आऊट करके उन्होने विश्वकप मे भारतीय गेंदबाजो का तब तक का सबसे बढिया प्रदर्शन किया ।
उन्होने उस मैच मे 6 विकेट लिये मात्र 23 रन देकर । इसके अलावा उन्होने उस विश्व कप मे 149.7 कि.मी /घंटे की रफ्तार से गेंद फेकी थी जो उस वक्त किसी भी भारतीय तेज़ गेंदबाज़ के द्वारा फेकी गई सबसे तेज़ गेंद थी ।
इस विश्वकप के बाद दुबले-पतले नेहराजी को इंजुरी ने पकड लिया परंतु 2004 मे उन्होने वापसी जब ज़हीर खान आस्ट्रेलिया के दौरे से बाहर हो गये थे । परंतु उस समय वो फिर से वही शानदार प्रदर्शन दोहरा नही पाये । नेहराजी इंजुरी के कारण कई बार टीम से बाहर रहे और इसी इंजुरीस के कारण उनके प्रदर्शन मे निरंतरता नही रही । लेकिन उन्होने कभी हार नही मानी जब वो पूरी तरह से फिट होकर वापस लौटे तो उन्होने आई.पी.एल मे धूम मचाई और शुरुवाती ओवर्स मे बल्लेबाजो परेशान करने वाले नेहराजी डेश ओवर के भी स्पेश्लिस्ट बन गये । इसी के बदौलत वो फिर से टीम मे वापस आये और शानदार गेंदबाजी के साथ उन्होने नये गेंदबाजो के संग अपना अनुभव भी बाटते रहे । 2011 विश्वकप मे भी वो शानदार फार्म मे थे परंतु सेमिफाइनल मे उन्हे फिर से चोट लगा गई और वो फाइनल नही खेल पाये । 1999 से खेल रहे नेहराजी कल 1 नवबंर 2017 को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह देंगे । न्यूजीलैण्ड के खिलाफ कल होने वाला टी-20 उनका आखरी अंतरराष्ट्रीय मैच होगा साथ ही अब इसके बाद वो आई.पी.एल भी नही खेलेंगे ।
नेहराजी ने अपने 18 साल के करियर मे 17 टेस्ट मैच खेले और 42.40 की औसत से 44 विकेट लिये है । उन्होने 120 एकदिवसीय मैचो मे 157 विकेट लिये है और 25 टी-20 मैचो मे 34 विकेट लिये है ।
नेहराजी 2003 और 2011 के विश्वकप मे भारत की टीम का हिस्सा थे, साथ ही दो एशिया कप और तीन चैम्पियन ट्राफी मे भी भारत की टीम के साथ थे ।
नेहराजी के बारे मे कई बाते है जो बडी ही इंटरेस्टींग है जैसे कोहली को स्कूल क्रिकेट मे प्राईज़ देना, सोशल मिडिया से दुरी और ऐड्वाईस देना । उनके बारे मे मशहूर है के अगर उन्होने किसी गेंदबाज़ को कोई एड्वाईस दी तो वो फेल नही होती ।
नेहराजी भले ही महान क्रिकेटर नही बने परंतु अपनी चालकी और स्विंग से हमेशा बल्लेबाज़ो को परेशान करते रहे उनका अनुभव आने वाले समय मे नये तेज़ भारतीय गेंदबाजो के काफी काम आ सकता है ।
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ज़ोरदार लेख दादा।नेहराजी का कच्चाचिट्ठा खोल दिया
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