भाई मैं हू चिंता मत कर
जिंदगी मे हम अकेले आते है और दुनिया की नज़र मे तो अकेले ही जाते है. परंतु जब हम इस दुनिया को अलविदा कहते है तो कई रिश्ते साथ होते है. जिनके बारे मे हमे याद नही रहता पर उन लोगो को जरुर हम याद रहते है जो हमारे साथ कई रिश्तो मे सहभागी बने. इन्ही रिश्तो मे से एक है दोस्ती का रिश्ता.
दोस्त, यार , यारा, मित्र , सखा ,सहेली और भिडू ऐसे कई नामो से जाना जाता है इस रिश्ते का साथी. बचपन मे जब चाकलेट को तोडकर दोस्त को आधी देते थे लगता था जिंदगी का सबसे बडा सुकून मिला है.
पेंसिल की नोक टूट जाने पर इधर-उधर नज़र घुमाते ही हमारे कंधे पर एक हाथ आ जाता था और जिस शार्पनर को हम खोज़ रहे होते थे, वो उस हाथ मे होता था. दोस्त संग रहते थे तो मुर्गा बनने मे भी मज़ा आता था. जब दोस्त का जन्मदिन होता था |
हम ऐसे खुश होते थे जैसे आज हमारा जन्मदिन हो उसके संग हर क्लास मे जाकर टाफी बाटते थे. जब कभी स्कूल मे खेलने का पिरियड होता था और दोस्त दुसरी टीम मे हुआ तब हमे धर्मसंकट शब्द का मतलब समझ आया था. दोस्त जहा कोचिंग जाता हम भी वही चले जाते या फिर वो हमारे पीछे आ जाता था |
कालेज़ मे जब आये तो फर्स्ट इयर के डर का साथी बना. दोस्त ना होता तो शायद कई असाइंटमेंट अधूरे रह जाते,अटेंडेंस शार्ट हो जाती आखिर प्रोक्सी भी वही लगाता था. इश्क की किताब का पहला पन्ना भी दोस्तो के नाम ही रहा. जब वो कहते थे- “ भाई मै सुबह से देख रहा हू ,तुझे ही देख रही है “. साथ ही इश्क का आखरी पन्ना भी दोस्तो के नाम ही है –“ अरे तू चिंता मत कर वो तेरे लायक नही थी. “ दोस्त एक ऐसे सहारे की तरह होते है जो आपको टांग अडा के गिरा भी देगा और आपका हाथ भी नही छोडेगा.
दोस्ती का रिश्ता हम खुद बनाते है और शायद इसलिये भरोसा भी ज्यादा करते है. एक्जाम की तैय्यारी हो या फिर वाई-वा हर डर के आगे ढाल बन जाते थे दोस्त. अगर ये कहू के हमारे हौसले की चाबी थे तो गलत नही होगा –“ अबे ये आसान है रुक मैं समझाता हू “. गलती किसी की भी हो पर इल्जाम सब अपने सर लेते थे.
आज जब चाकलेट खाता हू तो दोस्त बहुत याद आते है. दोस्त तब भी याद आते है जब टिफिन मे रोटी चार होती है और खाना अकेले होता है. भूख तो मिट जाती है पर दिल मे एक कसक रह जाती है. चाट के ठेले पर जब आज भी दोस्तो की टोली की लाइन सुनता हू – “ ये ले मेरे 2 रुपये , अबे तु भी दे , अरे मैं कल दे दूंगा , तूने आजतक दिये है “ तो दोस्त बहुत याद आते है . जब उदास हो जाते है तो आफिस मे कोई कहता है “ कोई ना सब ठीक हो जायेंगा “ तो दोस्त की वो झप्पी याद आती है जो कुछ कहे बगैर ही सब ठीक कर देती थी.
जब कभी गुमटी पर चाय की चुस्की लगाता हू तो दोस्त बहुत याद आते है. जब पेन मे रिफिल खत्म हो जाती है तो दोस्त बहुत याद आते है. एक लाइन – “ भाई मैं हू चिंता मत कर “ दोस्त की कही ये एक लाइन हमे हर तरह की मुश्किल पार करने का साहस देती थी .
याद जब बीते वक्त को करता हू तो लगता है यादो मे दोस्त है या सिर्फ दोस्ती की यादे है. मेरे जिंदगी मे आये मेरे सभी दोस्तो को दोस्ती दिवस की बहुत बहुत बधाई..
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