Poem On City | कौन रहता है इस शहर में

Poem on City

 

कौन रहता हैं इस शहर में ,

 

अनजाने लोग जहा मिलते है अब 

 

 

 

कौन रहता है इस शहर में,

 

रातो के साए जहा आते नहीं अब 

 

 

 

बंद दरवाजे है , खिड़की पर ताले है ,

 

चोखट पर धुल नहीं है अब 

 

 

कौन रहता है इस शहर में …..

 

 

 

ख्वाब तलाशने निकलना है ,
खुली आँखों से नींद आती नहीं अब 

 

आसमान का रंग बदल चूका है ,
पानी में भी तस्वीर नहीं दिखती अब 

 

 

 

मुस्कराहट की याददाश्त खो चुकी है ,
आंसुओ के सैलाब हर कदम पर है अब 

 

कौन रहता है इस शहर में …..

 

 

विचारों की परछाई दिख रही है ,
राज़ बेघर हो गए है यहाँ अब 

 

सिक्को की आवाज़ अब सुनाई देती नहीं ,
हवाओ में उड़ती है रोशनी उनकी अब 

 

जिंदगी से बेवफाई सबने की है ,
और मौत से डरते है सब 

 

बचपन में जवानी ,जवानी में बुढापा है ,
मौत के बाद भी चैन नहीं है अब

 

कौन रहता है इस शहर में …..

(चिराग )

 

 

 

 

 

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