Ajinkya Rahane,The Last Warrior | द्रविड के स्कूल का आखरी स्टूडेंट

Ajinkya Rahane

 

 

 

 रहाणे कभी उस तरह के बल्लेबाज़ नही रहे जो आते ही ताबड्तोड रन बनाने लगे। लेकिन वो हमेशा से ईनिंग को बिल्ड करते है और टीम को एक ऐसी पोजिशन मे पहुचाते है जहा से टीम के बडे हिटर स्कोर को आगे बढा सके, साथ ही अभी की जो भारत की टीम है उसमे अधिकतर स्ट्रोक प्लेयर है। रहाणे ऐसी टीम मे एक धागे की तरह है जिनके इर्द-गिर्द बाकी लोग खेल सकते है।

 

 

 

 

 

 

 

 

भारतीय क्रिकेट मे कई खिलाडी आये और गये। परंतु कुछ ही खिलाडी महान बन पाये और उनमे से एक-दो ही अपने आप मे एक स्कूल बन पाये। जी हा “स्कूल” , वो खिलाडी जिसने रिटायर्मेंट के बाद भी अपना योगदान भारत के क्रिकेट को देना जारी रखा। राहुल द्रविड एक ऐसे ही खिलाडी है। रिटायर्मेंट के बाद द्रविड अभी भारत की ए टीम के कोच है। द्रविड का योगदान एक कोच की भूमिका मे ऐसे ही रहा है जैसा महाभारत मे गुरु द्रोणाचार्य का रहा था। द्रोणाचार्य तो केवल एक ही एकलव्य से मिले थे। परंतु द्रविड के कई सारे शिष्य एकलव्य की तरह उन्हे अपना गुरु मान कर मेहनत कर रहे है। उनके सारे एकलव्य ठीक उनकी तरह तो नही है परंतु एक एकलव्य उनके काफी आसपास आ गया है। उस एकलव्य का नाम है “अजिंक्य रहाणे”। 

 

 

 

 

 

 

 

रहाणे एक मध्यमवर्गीय महाराष्ट्रीयन परिवार मे जन्मे थे। डोम्बिवली से दक्षिण मुबंई तक रोज़ लोकल ट्रेन मे सफर करके मैदान तक पहुचते थे। शुरु से ही थोडे दुबले-पतले रहाणे साथी खिलाडियो से थोडे छोटे लगते थे। परंतु टैलेंट मे वो सबसे आगे थे। ऐसे ही एक बार दक्षिण मुबंई मे एक मैच के दौरान लगभग दस साल के रहाणे अपना पुराना सा बैट लेकर बैटिंग करने उतरे, उनके सामने एक बीस साल का नौजवान (जो बहुत तेज़ गती से गेंद फेकता था।‌) खडा था। उसने पहली गेंद फेकी और सीधा रहाणे के हेलमेट पर जाकर लगी और वो धडाम से नीचे गिर गये। सब लोग मदद के लिये दौडे, कोई पानी पिला रहा था, कोई जाने के लिये कहरहा था और रहाणे दर्द से रो रहे थे। तभी अपांयर ने आकर रहाणे से कहा –“खेलना हो तो उठो, वर्ना घर जाओ”। रहाणे उठे, अपना हेलमेट सही किया, अपने आंसू पोछे और तैय्यार हो गये खेलने के लिये। उसके बाद जो हुआ वो रहाणे आज तक करते आ रहे है। रहाणे ने उस गेंदबाज़ को 4 गेंद पर चार चौके लगाये। ऐसे ही उन्हे 2013 मे डरबन मे डेन स्टेन का एक बाऊंसर हेलमेट पर लगा था। तब भी वो घबराये नही और खेलते रहे। उन्होने उस टेस्ट मैच मे पहली पारी मे नाट-आऊट 51 और दुसरी पारी मे 96 रन बनाये थे। 

 

 

 

 

 

रहाणे ने आस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट करियर और इंग्लैड के खिलाफ वन-डे एवं टी-20 करियर का आगाज़ किया था। अपने पहले टेस्ट (मार्च 2013) मे उन्होने पहली पारी मे 7(19) और दुसरी पारी मे 1(5) रन बनाये थे। रहाणे ने अपने वन-डे करियर की शुरुवात पहले (सितबंर 2011) की थी उस पारी मे उन्होने 40(44) बनाये थे और अपने पहले टी-20(अगस्त 2011) मे 61(39) रन बनाये थे। इन दोनो पारियो मे जो खास बात थी वो यह के इन दोनो पारियो मे उन्हे अपने गुरु राहुल द्रविड के साथ खेलने का मौका मिला था। अपने पहले टी-20 मे तो रहाणे ने द्रविड के साथ मिलकर दुसरे विकेट के लिये 65 रनो की साझेदारी की थी। अब तक खेले 45 टेस्ट मैच मे उन्होने 43.17 की औसत से 2893 रन बनाये है। जिसमे 9 शतक और 12 अर्धशतक शामिल है। इन 9 शतको और 12 अर्धशतको मे से 6 शतक और 9 अर्धशतक विदेशी धरती पर आये है। उनका 43.17 का औसत भी विदेशी धरती पर 52.05 तक पहुच जाता है। ये साफ दर्शाता है के उनके पास वो तकनीक है जिससे वो भारत के बाहर सफल हो रहे है और आगे भी होंगे।

 

 

 

 

 

रहाणे कभी उस तरह के बल्लेबाज़ नही रहे जो आते ही ताबड्तोड रन बनाने लगे। लेकिन वो हमेशा से ईनिंग को बिल्ड करते है और टीम को एक ऐसी पोजिशन मे पहुचाते है जहा से टीम के बडे हिटर स्कोर को आगे बढा सके, साथ ही अभी की जो भारत की टीम है उसमे अधिकतर स्ट्रोक प्लेयर है। रहाणे ऐसी टीम मे एक धागे की तरह है जिनके इर्द-गिर्द बाकी लोग खेल सकते है। परंतु इतने काम के बल्लेबाज़ होने के बाद भी इंग्लैड के दौर पर गयी भारत की वन –डे टीम मे उन्हे जगह नही दी। कारण ये के वो बाकी बल्लेबाजो की तरह 100 गेंद खेलकर 120-130 नही बनाते और लम्बे-लम्बे छ्क्के नही लगाते। परंतु इंग्लैड मे जहा गेंद स्विंग होती है और अगला वर्ल्ड कप भी है वहा रहाणे मुश्किल परिस्थितियो मे भी अपने कलात्मक अंदाज़ से रन बना देंगे जैसा वो अब तक करते आये है। 

 

 

 

 

 

वैसे तो भारतीय टीम मे कई धुरंधर खिलाडी है। रोहित,धवन और विराट इस टीम की जान है। ये तीनो मे से अगर कोई एक भी चल निकलता है तो बाद के बल्लेबाज़ आसनी या तो टीम के स्कोर को बढा देते है या फिर रनो का पिछा करते हुये मैच जीता देते है। लेकिन हर बार ऐसा नही होता है और अगर बात इंग्लैड की पिचो की हो तो वहा गेंद स्विंग काफी होती है। इस तरह की पिचो पर शुरुवात के विकेट अक्सर जल्दी गिर जाते है और अगर आपके शुरु के तीन बल्लेबाज़ आक्रमक तरीके से खेलते है तो उनके आऊट होने के चांस और ज्यादा हो जाते है। दिसबंर 2017 मे श्रीलंका के खिलाफ एक वन-डे मे हिमाचल मे हुये मैच मे भारत की आधी टीम 30 रन से कम पर आऊट हो गई थी। उस मैच मे बस विराट नही थे और हा रहाणे भी नही थे। ऐसी पिच पर एक ऐसे बल्लेबाज़ की जरुरत थी जो पिच पर रुककर खेलना जानते हो और रहाणे इसमे माहिर है। इंग्लैड के इस दौरे पर वन-डे टीम मे अबांति रायडू को जगह दी और जैसे उनका वन-डे और स्विंग के खिलाफ रिकार्ड है उससे साफ दिखता है के उन्हे सिर्फ और सिर्फ आई.पी.एल  के प्रदर्शन के आधार पर टीम मे चुना गया है। खैर वो यो-यो टेस्ट पास नही कर पाये और टीम से बाहर कर दिये गये। लेकिन फिर भी रहाणे को  उनकी जगह टीम मे ना लेकर सुरेश रैना को ले लिया गया जिनके बारे मे सबको पता  है के वो जब गेंद स्विंग हो और बाउंसी विकेट हो तो ज्यादा रन नही बना पाते। ये इंग्लैड ही है जहा पर प्रदर्शन खराब होने के कारण पहले टीम से बाहर हो गये थे। डर सिर्फ इस बात का है अगर इस बार फिर ऐसा  हुआ  किसी मैच मे तो भारत के पास बेंच पर रहाणे नही होंगे जो टीम को अगले मैच मे बचा ले। भारत की टीम इस बार पहले टी-20 और वन-डे पहले खेल रही है ताकी टेस्ट से पहले टीम अपने आप को इंग्लैड की परिस्थितियो से अभस्त करले। परंतु इसके साथ ही आत्मविश्वास भी जरुरी है। अगर टी-20 और वन-डे मे अगर कही कुछ गडबड हुई तो टीम अपना आत्मविश्वास खो देंगी। सबसे जरुरी बात ये है के अगला वर्ल्ड कप इंग्लैड मे ही है। द्रविड के बाद रहाणे है जिन्होने क्रिकेट के मक्का “लार्ड्स” मे शतक जमाया है। भारत की टेस्ट टीम का उपकप्तान को वन-डे टीम मे जगह नही मिली ये बात आश्चर्य से कम नही है। 

 

 

 

 

 

रहाणे ने अब तक 90 मैच  मे 35.26 की औसत से 2962 रन बनाये है। जिसमे 3 शतक और 24 अर्धशतक शामिल है। रहाणे को वन-डे टीम मे शामिल ना करके शायद चयनकर्ताओ ने एक ऐसी गलती कर दी है जिसकी भरपाई करना आसान नही होगा। हम सब चाहते है के भारत की टीम इंग्लैड मे हर फार्मेट मे जीत हासिल करे और अगर ऐसा हुआ तो रहाणे की जगह चुने गये खिलाडी उस पोजिशन पर अपनी जगह स्थापित कर लेंगे और फिर रहाणे कभी रंगीन कपडो मे ना दिखेंगे।

 

 

 

 

 

देखा जाये तो रहाणे द्रविड के स्कूल के आखरी स्टूडेंट है जिनमे द्रविड की शैली की झलक देखने को मिलती है। ऐसा नही है के और खिलाडी नही आयेंगे द्रविड के स्कूल से परंतु अब जब दौर टी-20 का और 50 ओवर मे 300 रन भी मामूली लगने का हो द्रविड वाली शैली मे खेलने वाले शायद ही मिलेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

आखिर मे हम आपको छोडे जा रहे है एक विडीयो के साथ जिसमे आप रहाणे की एक बेहतरीन वन-डे पारी को देख सकेंगे 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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