
माचिस की डिब्बी
दो महिने से चल रहे Lockdown मे हर कोई कुछ ना कुछ नया कर रहा है | कुछ लोग अपने परिवार के साथ वक्त बिता रहे है | साथ ही कई लोग अपने पुराने किस्से अपने बच्चो को भी सुना रहे है| बच्चे भी अपने परिवार के सिनियर्स के बारे मे जानकार सोच रहे है के ये अपने बडे लोग तो बहुत बडे वाले है | वैसे जहा तक मै अपनी बात करू तो Work From Home मे Online ही Students को पढा रहा हू और खाली वक्त जो भी मिल रहा है उसमे कुछ ना कुछ लिख रहा हू |
मेरी बेटी अभी 3.5 साल की है और उसके लिये घर मे इतने दिन दोस्तो और स्कूल के बगैर रहना एक बहुत मुश्किल कार्य है| इसिलिये अपने खाली वक्त का समय उसके लिये भी निकालता हू | अपने खाली वक्त मे priority पर अपनी बेटी के साथ समय बिताना सबसे पहले आता है | अभी जिस उम्र मे मेरी बेटी है | उस उम्र मे बच्चे आपसे कई सवाल करते है और अधिकतर इन सवालो के जवाब पता होते हुये भी बच्चे को समझाना मुश्किल होता है क्यॊकि हर जवाब मे वो दुसरा सवाल दाग देते है | ये महाभारत के अर्जुन के बाणॊ से भी तेज आपके पास आते है | आप अपने धनुष को सम्भालो इतने मे अगला सवाल तीर की तरह सीधा आपके पास आकर अपने जवाब की लालसा से खडा रहता है |
इन्ही सवालो मे मेरी बेटी ने एक सवाल मुझसे किया और बस उसी जवाब से निकली एक पुरानी याद जो आप सबके साथ आज साझा करूगा | सुबह–सुबह जब मै अपने इश्वर को स्नान करा के दिया लगाने जा ही रहा था | मेरी बेटी ने तपाक से माचिस को उठा लिया और पूछा -” पापा , हर बार एक जैसी माचिस क्यो लाते हो“| अब ये पोस्ट Sponsored तो नही है इसिलिये माचिस के Brand का नाम नही लिखूगा | मैने अपनी बेटी से कहा– “ आजकल यही मिलती है दूसरी मिलेगी तो ले आऊगा वो वाली माचिस भी “| अपने पापा की बात पर भरोसा कर उसने कहा-” ठीक है मास्क लगा के जाना और दूसरी माचिस ले आना” |
उसकी इस बात से याद आ गई एक ऎसी याद जिससे लगा के यार सच मे अब कहा इतने Brand देखने को मिलते है माचिस के जितने पहले दिखते थे | मुझे आज भी अच्छे से याद है , बचपन मे अक्सर जब मे अपने नानाजी–नानीजी के घर गर्मी की छुट्टियो मे जाता था | तब वहा के मेरे दोस्त और मै अक्सर माचिस के अलग– अलग Brand के Front को सहेज कर रखते थे |
जहाज,तलवार,कार,बाईक,सूरज,कबूतर,गुलाब,बतख,ज़ेब्रा और ना जाने कितने तरह के Brand माचिस बनाते थे | हम दोस्त अक्सर बाजार और घर मे अलग–अलग Brand की माचिस को ढूढते थे | उनपर छ्पे हुये फ़ोटो को फ़ाडकर हम अपनी–अपनी ताश की गड्डी बना कर आपस मे खेलेते थे | इन माचिस के फ़ोटो को ढूढने के लिये ना सिर्फ़ घर और बाजार बल्की हम गाव मे हर जगह घुमते थे |
हमारी कोशिश होती थी के हमारे सबसे Unique तरह का Brand हो | फ़िर हम इसको हम अपनी सम्पत्ति की तरह सम्भाल के रखते थे| आपस मे हमने हर Brand की एक Value तय करते थे | जैसे शेर –बकरी,भेड और हिरण से बडा होगा | जहाज़ – नाव,तलवार और ऎसी कई चीजो से बडा होगा और इन्सान सबसे बडा होगा | बस ये नियम तय करके हम ताश खेलते थे और आखिर मे कोशिश करते थे के अपने पास सबसे ज्यादा और Unique Brands के फ़ोटॊ हो | अब इस उम्र मे जरुर मै कई तर्क दे सकता हू के उस खेल से ये सिखते थे वो बाते समझते थे | पर उस वक्त तो बस ये खेल ही था |
Big Fun का नाम की एक Bubble Gum आया करती थी और इससे मिलने वाले Cards जो सारे ही Cricket से Related थे आज भी मेरे पास है | जब बेटी ने सवाल किया तो याद के साथ एक मलाल भी रहा के काश मेरे पास आज वो माचिस के Brands होते | वैसे एक और बात जो मेरे ख्याल मे आयी के पहले कितने ज्यादा तरह के माचिस Brands आते थे | परन्तु अब आप अब गिनोगे तो शायद 10 तक की गिनती भी कम पड जाये | खैर मे इसके कारण तो नही जानता पर अगर आपने भी ये खेल खेला हो या नही भी खेला हो तो भी इस पोस्ट पर Comment किजियेगा |
very nice article post-
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Bohot accha chirag bhai humne bhi khela hai..purani yaad as gai..
Nice one sir jee
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बहुत खूब लिखा है सर, बचपन की याद ताजा हो गयी.. सबसे ज्यादा मिलने वाली घोड़े वाली माचिस होती थी.. जो ताश के खेल में सबसे ज्यादा बार बाजी काटती थी..और वह भी जिसपे 50 पैसा बना होता था.. उसमे खेल का नियम होता था कि हर-50 है या नही… ����
बड़ा ही मज़ेदार खेल था वो, मुर्गा,कमल,रेल,डोडा हमारे यहां की प्रचलित थी। बचपन की यादें ताज़ा हो गयी