मैं रहूंगा
जब तू सुबह उठ कर अपनी जुल्फो को सवार रही होगी ,
तब सुबह की उस ताज़गी मे ,
मैं रहूंगा ...
तब सुबह की उस ताज़गी मे ,
मैं रहूंगा ...
मुस्कुरा कर जब तू आइने मे देख रही होगी खुद को ,
तब उस आइने मे संग तेरे,
मैं रहूंगा ...
तब उस आइने मे संग तेरे,
मैं रहूंगा ...
दिन मे जब तू बिना कुछ खाये –पीये काम करेंगी ,
तो तेरी हर थकान को दूर करने .. ठ्न्डी हवाओ मे ,
मैं रहूंगा ....
तो तेरी हर थकान को दूर करने .. ठ्न्डी हवाओ मे ,
मैं रहूंगा ....
जब सांझ ढलने को होगी और तू मेरा इंतेजार करेगी ,
तब उस इंतेजार के हर एक पल मे ,
मैं रहूंगा ....
तब उस इंतेजार के हर एक पल मे ,
मैं रहूंगा ....
सज-सवंर के जब तू बिंदिया लगायेंगी तो ,
उस बिंदीया की सरलता मे ,
मैं रहूंगा ...
उस बिंदीया की सरलता मे ,
मैं रहूंगा ...
मैं रहूंगा ...उन कंगनो की मधुर आवाज़ मे ,
सिंदूर मे , काज़ल मे और तेरी पायल की छम-छम मे .
सिंदूर मे , काज़ल मे और तेरी पायल की छम-छम मे .
रात को जब चांद की पूजा करके तू ,
मुझे देखना चाहेगी ,
तो बस अपनी आंखे बंद कर लेना,
मैं रहूंगा .... तेरी आंखो मे वही ..
मुझे देखना चाहेगी ,
तो बस अपनी आंखे बंद कर लेना,
मैं रहूंगा .... तेरी आंखो मे वही ..
मेरा शरीर संग तेरे नही होगा आज ,
पर मेरी रुह वही होगी कही आसपास,
मैं हमेशा रहूंगा...तेरे दिल मे , विश्वास मे और तेरी हर सांस मे .
मैं रहूंगा .... मैं रहूंगा .... मैं रहूंगा .....
ये कविता मैंने अपनी पत्नी के लिये लिखी है .
( चिराग जोशी )
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