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Poem On World | चल रही हैं दुनिया

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    धोखे पर ही चल रही हैं दुनिया, जो सच कहा मैंने तो मुझे गुनहगार कह रही हैं दुनिया   इंसान ही इंसान को जानवर कह रहा हैं, जानवरो का तो गोश्त खा रही हैं दुनिया ना अपने की फिक्र, ना पराये की खुशी, सिर्फ “ मैं ” मे सिमट गई हैं दुनिया धोखे पर ही चल रही हैं दुनिया, जो सच कहा मैंने तो मुझे गुनहगार कह रही हैं दुनिया कांच के टुकडे पर कोई चलता नही, पत्थर घरो पर एक दुसरे के फेकती हैं दुनिया मुस्कुराकर ना चलना यहा कभी, जलन के मारे जलती हैं दुनिया अच्छाई को सुंघती भी नही, बुराई से पेट भरती हैं दुनिया धोखे पर ही चल रही हैं दुनिया, जो सच कहा मैंने तो मुझे गुनहगार कह रही हैं दुनिया कोई लडे तो पिछे खडी हो जाती हैं, अकेले मे तो खुद के ही लब सील लेती हैं दुनिया कभी चादर भरोसे की ओढ मत लेना, छेद गद्दारी के करती हैं दुनिया धोखे पर ही चल रही हैं दुनिया, जो सच कहा मैंने तो मुझे गुनहगार कह रही हैं दुनिया अपनी मंज़िल का पता सबको ना बताना यहा, आंखे फोडकर सपने चुराती हैं दुनिया कभी विद्वान खुद को समझना ना यहा कदम कदम पर पाठ पढाती हैं दुनिया धोखे पर ही चल रही हैं दुनिया, जो सच कहा मैंने तो मुझे गुनहगार कह रही हैं