मेरे हर सफ़र का साथी था वो
ना जाने कब हवा चली और धुँआ हो गया वो
मेरी हर नजर का दर्पण था वो
ना जाने कब धुप गई और अँधेरा हो गया वो
मेरी चादर का एक किनारा था वो
ना जाने कब रास्ते में काँटा आया और फट कर चिंदी हो गया वो
मेरी रात का एक सपना था वो
ना जाने कब सुबह हुई और टूट गया वो

मेरी गजल का गायक था वो
ना जाने कब स्याही ख़त्म हुई और बेसुरा हो गया वो
मेरी आँखों में लगा सुरमा था वो
ना जाने कब आंसू आये और बह गया वो
मेरी तारीफों का पुलिंदा था वो
ना जाने कब शोहरत गई और गुम हो गया वो
मेरी नाजुक हथेलियों में लकीर था वो
ना जाने कब बारिश हुई और मिट गया वो
मेरी जिंदगी की पहचान था वो
ना जाने कब मौत आई और दफ़न हो गया वो
(चिराग )
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bahut khub chirag
ReplyDeleteis moke par m apni kuch panktiya likhti hu
" vo to chala hi gya ,
jise jana tha
tu na use yaad kar
apna jivan tu
uske liye na barbad kar"
_ deepti sharma
गहन अभिव्यक्ति ...........
ReplyDelete@deepti thanks and nice lines good
ReplyDelete@nivedita ji
ReplyDeletethanks a lot
पर उम्मीद में है बसा अब भी वो...
ReplyDeleteखूबसूरत रचना।
@induravisinghji thanks a lot
ReplyDeleteअपने सुन्दर लेखन से आप ब्लॉग जगत को सदा ही
ReplyDeleteआलोकित करते रहें यही दुआ और कामना है.
आपसे परिचय होना वर्ष २०११ की एक सुखद उपलब्धि रही.
सुंदर..!!
ReplyDelete:) Loved it...!! :)
ReplyDeleteकल 30/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
मेरी नाजुक हथेलियों में लकीर था वो
ReplyDeleteना जाने कब बारिश हुई और मिट गया वो ...सजीव अभिवयक्ति.....
खूबसूरत गज़ल
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