मेरे हर सफ़र का साथी था वो
ना जाने कब हवा चली और धुँआ हो गया वो
मेरी हर नजर का दर्पण था वो
ना जाने कब धुप गई और अँधेरा हो गया वो
मेरी चादर का एक किनारा था वो
ना जाने कब रास्ते में काँटा आया और फट कर चिंदी हो गया वो
मेरी रात का एक सपना था वो
ना जाने कब सुबह हुई और टूट गया वो

मेरी गजल का गायक था वो
ना जाने कब स्याही ख़त्म हुई और बेसुरा हो गया वो
मेरी आँखों में लगा सुरमा था वो
ना जाने कब आंसू आये और बह गया वो
मेरी तारीफों का पुलिंदा था वो
ना जाने कब शोहरत गई और गुम हो गया वो
मेरी नाजुक हथेलियों में लकीर था वो
ना जाने कब बारिश हुई और मिट गया वो
मेरी जिंदगी की पहचान था वो
ना जाने कब मौत आई और दफ़न हो गया वो
(चिराग )
Also Read Life Poetry
Youtube -Chirag Ki Kalam
Poem On Unknown | Poem On Unknown Friend | Poem On Unknown World | Poem on Unknown Citizen | Unknown Soldier | Unknown Girl | Unknown Author | Unknown Soldier